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होली / राकेश खंडेलवाल
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18:59, 26 फ़रवरी 2007
न बजती बाँसुरी कोई न खनके पांव की पायल<br>
न खेतों में लहरता
जै
है
किसी का टेसुआ आँचल्<br>
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है<br>
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है<br><br>
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घनश्याम चन्द्र गुप्त