अपनी बहुत-सी रचनाएँ प्रकाशित कराईं। गोरखपुर से प्रकाशित होने वाले ’स्वदेश’ साप्ताहिक में तो वे नियमित
रूप से कुछ न कुछ लिखते थे। ’बंधु विनय’, ’धनुष-भंग’ और ’प्रेम’ इनके चर्चित काव्य हैं।
==एक और परिचय==
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के 'गजपुर' नामक स्थान सन,1885 में जन्म। शिक्षा जुबिली स्कूल, गोरखपुर, क्वींस कालेज, काशी और म्योर कालेज, इलाहाबाद। शिक्षा के अनंतर सरकारी पद पर आसीन हुए और तहसीलदार रहे। बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। गद्य और पद्य दोनों में उनकी समान गति थी। उनकी भाषा शैली नवीनता की दृष्टि से अपने युग से कहीं आगे थी। उन्हें कविताओं में प्रकृतिप्रेम और देशप्रेम की अभिव्यक्ति जिस शैली में हुई है, वह भी अपने युग की सीमाओं का अतिक्रमण करती हुई है।प.मन्नन द्विवेदी गजपुरी,बी.ए. एक प्रेमचंद कालीन प्रख्यात हिन्दी साहित्यकार थे. मुंशी प्रेमचन्द जी और द्विवेदी जी घनिष्ठ मित्र एवं गुरू भी थे . प.मन्नन द्विवेदी गजपुरी , भारत के पहले बालकवि और बालसाहित्यकार थे.मन्नन जी के सानिध्य में आने से पूर्व प्रेमचन्द की रचनाओं का मूल भाषा माध्यम उर्दू था.मन्नन जी के मार्गदर्शन में पहली बार उन्होने हिन्दी भाषा में मुंशी प्रेमचन्द नें 'प्रेम-पचीसी'नामक लघु कथा संग्रह लिखा.इस समय प्रेमचन्द बस्ती गोरख्पुर में अपनी इंटरमीडिएट की परीक्षा की तैयारी कर रहे थें.
हिन्दी में प्रेमचंद का प्रथम कहानी संग्रह सप्तसरोज 1917 ई० में हिन्दी पुस्तक एजेंसी, कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। किंतु इस संग्रह की ‘सौत’ कहानी को छोड़कर शेष 6 कहानियाँ उर्दू मूल से रूपांतरित की गयी थीं. यह रूपंतार्ण मन्नन द्विवेदी गजपुरी की सहायता से किया गया था. संग्रह की भूमिका में गजपुरी ने प्रेमचंद को उर्दू और हिन्दी के प्रसिद्ध गल्प लेखक के रूप में परिचित कराया था, जबकि इस संग्रह से पूर्व हिन्दी पाठकों के मध्य प्रेमचंद मात्र तीन कहानियों सौत, सज्जनता का दण्ड और पंचपर्मेश्वर के लेखक थे और उन्हें अभी उल्लेख्य ख्याति नहीं मिल पाई थी.
मन्नन जी ने ना केवल स्वयं की रचनाधर्मिता से साहित्य जगत को प्रकाशित किया , बल्कि अपने समकालीन अनेकों नव लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत और मार्गदर्शक बने
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