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फिरे, सब फिरे / गुलाब खंडेलवाल
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01:20, 26 मई 2010
फिरे, सब फिरे
लहरों के बीच हम अकेले ही तिरे
कोई द्वार से ही, कोई गाँव के सिवान से
कोई पनघट से, कोई खेत-खलिहान से
Vibhajhalani
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