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07:27, 26 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
कि जीवन आशा का उल्लास,
कि जीवन आशा का उपहास,
कि जीवन आशामय उद्गार,
कि जीवन आशाहीन पुकार,
:::दिवा-निशि की सीमा पर बैठ
:::निकालूँ भी तो क्या परिणाम,
:::विहँसता आता है हर प्रात,
:::बिलखती जाती है हर शाम!