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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


नहीं है यह मानव का हार

कि दुनिया यह करता प्रस्‍थान,

नहीं है दुनिया में वह तत्‍व

कि जिसमें मिल जाए इंसान,


:::पड़ी है इस पृथ्‍वी पर हर कब्र,

:::चिता की भूभल का हर ढेर,

:::कड़ी ठोकर का एक निशान

:::लगा जो वह जाता मुँह फेर।
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