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07:37, 26 मई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
कहीं मैं हो जाऊँ लयमान,
कहाँ लय होगा मेरा राग,
विषम हालाहल का भी पान
बढ़ाएगा ही मेरा आग,
:::नहीं वह मिटने वाला राग
:::जिसे लेकर चलती है आग,
:::नहीं वह बुझने वाली आग
:::उठाती चलती है जो राग!