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आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब
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18:29, 30 मई 2010
<poem>
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर
हॊनॆ
होने
तक!
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर
हॊनॆ
होने
तक!
हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!
</poem>
अनिल जनविजय
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