नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …
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{{KKRachna
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर
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<poem>
अब भला छोड़ के घर क्या करते
शाम के वक़्त सफ़र क्या करते
तेरी मसरुफियतें जानते हैं
अपने आने की ख़बर क्या करते
जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-कमर क्या करते
वो मुसाफिर ही खुली धूप का था
साये फैला के शजर क्या करते
खाक़ ही अव्वल-ओ-आख़िर ठहरी
करके ज़र्रे को गुहर क्या करते
राय पहले से बना ली तूने
दिल में अब हम तिरे घर क्या करते
</poem>