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|रचनाकार=ग़ालिब|संग्रह= दीवाने-ग़ालिब / ग़ालिब
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ज़ुल्मतकदे<ref>अँधेरा-कमरा</ref> में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम्मा है दलील-ए-सहर<ref>सुबह का सुबूत</ref> सो ख़मोश है
ज़ुल्मतकदे में मेरे शबना मुज़्दा-ए-ग़म का जोश है विसाल<brref>मिलन की खुशी</ref> न नज़्ज़ारा-ए-जमाल<ref>हसीन दृश्य</ref>इक शम्मा है दलीलमुद्दत हुई कि आश्ती-ए-सहर, सो ख़मोश हैचश्म-ओ-गोश<brref>आँख और कान में अमन<br/ref> है
ना मुज़्दामै ने किया है हुस्न-ए-विसाल न नज़्ज़ाराख़ुदआर को बेहिजाब अए शौक़, हाँ, इजाज़त-ए-जमाल <br>मुद्दत हुई कि आश्तीतस्लीम-ए-चश्म-ओ-गोश होश है <br><br>
मै ने किया है हुस्नगौहर<ref>मोती</ref> को अ़क्द-ए-ख़ुदआर को बेहिजाब गर्दन-ए-ख़ूबां<ref>प्रिय का गिरेबां<br/ref>में देखना अए शौक़ याँ इजाज़तक्या औज<ref>ऊँचाई</ref> पर सितारा-ए-तस्लीम-ए-होश है गौहरफ़रोश<brref>मोती बेचने वाला की किस्मत<br/ref>है
गौहर को इक्ददीदार, वादा, हौसला, साक़ी, निगाह-ए-गर्दनमस्त बज़्म-ए-ख़ुबाँ में देखना <br>क्या औज पर सिताराख़याल मैकदा-ए-गौहरफ़रोश बेख़रोश है <br><br>
दीदार, वादा, हौसला, साक़ी, निगाहअए ताज़ा वारिदन-ए-मस्त <br>बज़्मबिसात-ए-ख़याल मैकदाहवा-ए-बेख़रोश दिल ज़िंहार अगर तुम्हें हवस-ए-न-ओ-नोश है <br><br>
अए ताज़ा वारिदनदेखो मुझे जो दीदा-ए-बिसातइबरत-ए-हवा-ए-दिल <br>निगाह हो ज़िंहार गर तुम्हें हवसमेरी सुनो जो गोश-ए-न-ओनसीहत-नोश नियोश है <br><br>
देखो मुझे जो दीदासाक़ी ब जल्वा दुश्मन-ए-इबरतनिगाह हो <br>ईमान-ओ-आगही मेरी सुनो जो गोशमुतरिब ब नग़्मा रहज़न-ए-नसीहतनियोश तम्कीन-ओ-होश है <br><br>
साक़ी बजल्वा दुश्मनया शब को देखते थे कि हर गोशा-ए-इमाँ-ओ-आगही <br>बिसात मुतरिब बनग़्मा रहज़नदामान-ए-तम्कीनबाग़बाँ-ओ-होश कफ़-ए-गुलफ़रोश है <br><br>
या शब को देखते थे कि हर गोशालुत्फ़-ए-बिसात <br>दामानख़ीराम-ए-बाग़बाँसाक़ी-ओ-कफ़ज़ौक़-ए-सदा-ए-चंग ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िर्दौस-ए-गुलफ़रोश गोश है <br><br>
लुत्फ़या सुबह दम जो देखिये आकर तो बज़्म में ना वह सुरूर--ख़ीराम-ए-साक़ीसोज़ न जोश-ओ-ज़ौक़-ए-सदा-ए-चंग <br>ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िर्दौस-ए-गोश ख़रोश है <br><br>
य सुभ दम जो देखिये आकर तो बज़्म में <br>ना वो सुरूरदाग़--सोज़ न जोशफ़िराक़--ख़रोश सोहबत-ए-शब की जली हुई इक शम्मा रह गई है सो वो भी ख़मोश है <br><br>
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई आते हैं ग़ैब<brref>इक शम्मा रह गई है सो वो भी ख़मोश है रहस्य<br/ref><br> आते हैं ग़ैब से ये मज़ामी ख़याल में <brref>सोच</ref>ख़याल में "ग़ालिब", सरीर-ए-ख़ामा <ref>कलम के घिसने की आवाज</ref> नवा-ए-सरोश है<brref>परी की आवाज<br/ref>है</poem>{{KKMeaning}}
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