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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}


तुम उठा लुकाठी खड़े चौराहे पर;

बोले, वह साथ चले जो अपना दाहे घर;

:::तुमने था अपना पहले भस्‍मीभूत किया,

:::::फिर ऐसा नेता

::::::देश कभी क्‍या

:::::::पाएगा?


फिर तुमने हाथों से ही अपना सर

कर अलग देह से रक्‍खा उसको धरती पर,

:::फिर ऊपर तुमने अपना पाँव दिया

:::यह कठिन साधना देख कँपे धती-अंबर;

:::::है कोई जो

::::::फिर ऐसी राह

:::::::बनाएगा?


इस कठिन पंथ पर चलना था आसान नहीं,

हम चले तुम्‍हारे साथ, कभी अभिमान नहीं,

:::था, बापू, तुमने हमें गोद में उठा लिया,

:::::यह आने वाला

::::::दिन सबको

:::::::बतलाएगा।
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