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16:36, 1 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
तुम उठा लुकाठी खड़े चौराहे पर;
बोले, वह साथ चले जो अपना दाहे घर;
:::तुमने था अपना पहले भस्मीभूत किया,
:::::फिर ऐसा नेता
::::::देश कभी क्या
:::::::पाएगा?
फिर तुमने हाथों से ही अपना सर
कर अलग देह से रक्खा उसको धरती पर,
:::फिर ऊपर तुमने अपना पाँव दिया
:::यह कठिन साधना देख कँपे धती-अंबर;
:::::है कोई जो
::::::फिर ऐसी राह
:::::::बनाएगा?
इस कठिन पंथ पर चलना था आसान नहीं,
हम चले तुम्हारे साथ, कभी अभिमान नहीं,
:::था, बापू, तुमने हमें गोद में उठा लिया,
:::::यह आने वाला
::::::दिन सबको
:::::::बतलाएगा।