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17:57, 1 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
}}
ओ देशवासियों, बैठ न जाओ पत्थर से,
ओ देशवासियों, रोओ मत यों निर्झर से,
:::दरख्वास्त करें, आओ, कुछ अपने ईश्वर से
:::वह सुनता है
::::::ग़मज़ादों और
:::::::रंजीदों की।
जब सार सरकता-सा लगता जग-जीवन से,
अभिषिक्त करें, आओ, अपने को इस प्रण से-
:::हम कभी न मिटने देंगे भारत के मन से
:::::दुनिया ऊँचे
::::::आदर्शों की,
:::::::उम्मीदों की।
माधना एक युग-युग अंतर में ठनी रहे
यह भूमि बुद्ध-बापू-से सुत की जनी रहे;
:::प्रार्थना एक युग-युग पृथ्वी पर बनी रहे
:::::यह जाति
::::::योगियों, संतों
:::::::और शहीदों की।