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आँसू / जयशंकर प्रसाद / पृष्ठ ३

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गिनता अम्बर के तारे।<br />
<br />
निष्ठुर ! यह क्या छिप जाना?<br />
मेरा भी कोई होगा<br />
प्रत्याशा विरह-निशा की<br />
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