<br />
मणिदीप विश्व-मन्दिर की<br />
पहने किरणों को की माला<br />
तुम अकेली तब भी<br />
जलती हो मेरी ज्वाला।<br />
इस व्यथित विश्व पतझड़ की<br />
तुम जलती हो मृदु होली<br />
हे अरुणे! सदा सुहानिगिसुहागिनि <br />
मानवता सिर की रोली।<br />
<br />
जागो मेरे मधुवन में <br />
फिर मधुर भावनाओं का <br />
कवरव कलरव हो इस जीवन में।<br />
<br />
मेरी आहों में जागो<br />