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<poem>
प्राणों में चिर यथा व्यथा बाँध दी!
क्यों चिर दग्ध हृदय को तुमने
वृथा प्रणय की अमर साध दी!
हृदय दहन रे हृदय दहन,
प्राणों की व्याकुल यथा व्यथा गहन!
यह सुलगेगी, होगी न सहन,
चिर स्मृति की श्वास समीर साथ दी!
सोने सी तप निकलेगी
प्रेयसि प्रतिमा ममता अगाध दी!
प्राणों में चिर यथा व्यथा बाँध दी!
</poem>
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