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घोड़ा / मुकेश मानस

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'''घोड़ा'''
 
सबको अच्छा लगता है
जब तक घोड़ा दौड़ता है
मरे हुए घोड़े का
कोई फोटो नहीं खींचता
उसकी बेजोड़ कुलांचों कुलाँचों पर
कोई किताब नहीं लिखता
  रचनाकाल : 1987
<poem>
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