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अपना होना कई दिन गुजरेगुज़रेखूब ख़ूब रहा उदास
कहीं कोई रोशनी नहीं
हर सिम्त बेआस
इस बेआस दिनों में
खुद ख़ुद को जाना
अपने होने को पहचाना
रचनाकाल : 1994
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