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{{KKRachna|रचनाकार=मुकेश मानस|संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस }} {{KKCatKavita}}
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बस गवैया
चलती बस की खड़ी भीड़ में
देखो बच्चा चूमता है
चूमता है दोनों हाथ
चूमता शीशे की पट्टियांपट्टियाँसूखा गला साफ साफ़ करता है
होठों पर जीभ फिराता है
वह शुरू करेगा अब कोई गीत
यात्रियों को लुभा सके उसकी आवाज़
निकलें गीत पेट से उसके
आओ बंधू बंधु दुआ करें रचनाकाल : 1991
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