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धरती पर आँगन, छत नभ में बैठक की, न खिड़की द्वार की बातें फ़क़त बाकी रही हैं बीच की दीवार की बातें   जहाँ दो गाँव मिलते थे गले, चौपाल साँझी थी वहीं दिन रात चलती हैं, कँटीले तार की बातें   क़सम खाई थी जिनके साथ जीने और मरने की तुली हैं काटने पर क्यों उन्हें तलवार की बातें   जिन्हें हम एकता का सूत्र कह नारे लगाते थे वही लगने लगी हैं अब कहीं कोई हमारा बहुत बेकार की बातें   वो जिनकी जान हिन्दुस्तान था, ईमान आज़ादी उन्हें बहका रही हैं धर्म के व्यापार की बातें   गुज़ारी एक तट पर जिनके पुरखों ने कई सदियाँ वो क्यों करने लगे इस पार की, उस पार की बातें   अभी उम्मीद बाक़ी हैकि शायद वक़्त शरमाये गिले शिकवे सभी हों दूर, हों फिर प्यार की बातें
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