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अँधियाली घाटी में / सुमित्रानंदन पंत
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07:52, 10 जून 2010
::मानव-आत्मा का प्रकाश-कण
::जग सहसा, ज्योतित कर देता
::मानस के चिर गुह्य कुंज-
बन
वन
!
'''रचनाकाल: मई’१९३५'''
</poem>
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