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बर्फ को पिघलने दो / विजय वाते
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,
06:00, 11 जून 2010
<poem>
बातचीत चलने दो,
बर्फ
बर्फ़
को पिघलने दो
|
।
दर्द का तकाजा है,
आँख को मचलने दो
|
।
कुछ सितारे चमकेंगे,
आफ़ताब ढलने दो
|
।
ओस का करो स्वागत,
टार को तो गलाने दो
|
।
</poem>
अनिल जनविजय
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