{{KKCatGhazal}}
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जैसे जैसे हम बड़े होते गयेगए, झूठ कहने मे खरे होते गये |गए ।
चाँद बाबा गिल्ली डंडा इमलियाँ,
सब किताबों के सफे सफ़े होते गये |गए ।
अब तलाक तलक तो दूसरा कोई न था, रफ्ता रफ्ता रफ़्ता रफ़्ता तीसरे होते गये |गए ।
एक बित्ता कद क़द हमारा क्या बढ़ा,हम अकारण ही बुरे होते गये | गए ।
जंगलों में बागबां कोई नहीं,
इसलिए पौधे हरे होते गये |गए ।</poem>