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20:19, 12 जून 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते
}}
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<poem>
यूँ रोने का कोई नतीज़ा नहीं
मगर दिल पे काबू किसी का नहीं
सही है कि दो और दो चार लेकिन
सरल ये गणित हमने सीखा नहीं
न हो कैफे-मस्ती न दीवानगी तो
वो मिल जाए ऐसा तरीका नहीं
सतह पर टटोले न डूबे न भीगे
ये शेरो-सुखन का तरीका नहीं है
</poem>