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18:58, 14 जून 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते
}}
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<poem>
शायरी के हुस्न को यूँ आजमाना चाहिए
एक पल के वास्ते सब छोट जाना चाहिए
हो गया है पिष्ट पेषण अब गजल मे हर तरफ
बात में अब और कुछ नावीन्य आना चाहिए
उग रही है हर मोहल्ले में अचानक बेशरम
बागवानी का नया अंदाज़ आना चाहिए
चिमनियां, बादल घनेरे और भागमभाग के
कुछ तो इस माहुँल में बदलाव आना चाहिए
सिर्फ भाषा में गणित की बात करना छोड़ कर
अब गजल के शेर कुछ पल गुनगुनाना चाहिए
</poem>