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19:22, 14 जून 2010 {{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= ग़ज़ल / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पूछिए सब कुछ हवा से पूछिए
खैरियत लेकिन खुदा से पूछिए
दर्दोगम की इन्तिहा से पूछिए
क्या कहता थी बद्दुआ से पूछिए
रेल कितना कुछ हमारा ले गई
लक्ष्मण की उर्मिला से पूछिए
आश्वासनों के रंग हैं कितने मधुर
ये किसी ताजे पिता से पूछिए
वो हरे सिग्नल लगे कितने निठुर
फ़िक्र में डूबी दुआ से पूछिए
जानकी कैसे रहे उद्यान में
राम जी की मुद्रिका से पूछिए
</poem>