सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उसकी
सो हम भी उसकी गली से गुज़र कर के देखते हैं
सुना है उसको भी है शेर-ओ-शायरी से शगफ़
सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है
सितारे बाम-ए-फ़लक से उतर कर के देखते हैं
सुना है हश्र हैं उसकी ग़ज़ाल सी आँखें
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
फ़राज़ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं
जुदाइयां तो मुक़द्दर हैं फिर भी जाने सफ़र
कुछ और दूर ज़रा साथ चलके देखते हैं
रहे रह-ए-वफ़ा में हरीफ़े हरीफ़-ए-खुराम कोई तो होसो अपने आप से आगे निकाल निकल के देखते हैं
तू सामने है तो फिर क्यों यकीं नहीं आता
यह बार बार जो आँखों को मॉल मल के देखते हैं
ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफिल में
जो लालचों से तुझे, मुझे जलके जल के देखते हैं
यह कुर्ब क्या है कि यकजाँ हुए न दूर रहे
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं
अभी तक तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
बहुत दिनों से नहीं है कुछ उसकी ख़ैर ख़बर
चलो फ़राज़ को ए ऐ यार चलके चल के देखते हैं
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