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21:17, 17 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
तेरे आँचल की मकई बिखर जाए रे
ज्यों सितारे जमीं पर उतर आए रे
भटकि मेले में ज्यों ज्यों अचकची सी दुल्हन
देख साजन को कैसे निखर जाए रे
मेघ के हलचलों मे कंवारी किरन
बंद कमरे में सुख से सिहर जाए रे
बादलों से ढके दिन से थक कर के सांझ
शिकवे सूरज से कर चुप से ढर जाए रे
सूखे खेतों में पपड़ी उभर आए पर
सूर्य मेघों के भीएतर छितर जाए रे
</poem>