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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते;ग़ज़ल / विजय वाते
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<poem>
दिन हफ्ते पखवाड़े बदले सन भी बदले हैं
लेकिन घर के सारे कोने पहले जैसे हैं

आज सुबह तेरी अलमारी मैंने खोली थी
और तभी से तेरी खुशबू मुझको घेरे है

मेरी सारी अच्छी शर्टें तू रख लेता था
देख आज तेरे ये कपडे मैंने पहने हैं

सब कहते हैं तू सपनों में आ कर मिलता है
अपनी किस्मत में सपने भी किस्मत जैसे हैं
</poem>