{{kkglobalKKGlobal}}<br />{{'''अंतिम कविता'''<br />KKRachna।रचनाकार|रचनाकार=रमेश कौशिक|संग्रह=
}}
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'''यह कविता कवि ने गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व लिखी थी''' वे आ रहे हैं<br />श्याम वर्ण अश्र्वों पर सवार<br />मेरे घर की ओर ।<br /><br /> उनके काम बता दिए गये-<br />गएएक का काम है मुझको नहीं बोलने देने का<br />वाणी को छीन लें ।<br /> दूसरे का काम है<br />न सुनने देने का ।<br /> तीसरे का काम है<br />आंख आँख बन्द करने का-<br />ताकि मैं उनका आतंक न देख सकूं सकूँ ।<br /> चौथे का काम है<br />मेरे दांत दाँत तोड़ने का<br />ताकि मैं चलते समय<br />किसी पर आक्रमण न करूँ ।<br /> कुछ देर रुक कर<br />फिर एक गहन सन्नाटा।<br /><br /><br />(*यह कविता गहन रुग्णावस्था में निधन से मात्र 20 दिन पूर्व रचित)
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