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शून्य / रमेश कौशिक

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=रमेश कौशिक|संग्रह=151 बाल-कविताएँ / रमेश कौशिक}}{{KKCatBaalKavita}}<poem>पहले मैं सोचा करता था<br />नहीं शून्य का कुछ भी मतलबलेकिन इसमें कितनी ताक़तइसको जान गया हूँ मैं अब। अगर एक के साथ शून्य होतो पूरे दस बन जाएँगेदस के साथ लगाओगे यदितो पूरे सौ कहलाएँगे। सौ के संग भी एक शून्य होतो हज़ार यह बन जाते हैंएक शून्य यदि और यहाँ होदस हज़ार फिर कहलाते हैं। कुछ भी नहीं समझते जिनकोसाथ बिठा उनको देखोगेतो दस गुनी शक्ति अपने मेंनिश्चय बढ़ी हुई पाओगे। <poem>
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