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चौपाल

2,089 bytes added, 16:57, 10 दिसम्बर 2007
::जरुर। मैने भी यही सोचा था। आरती और भजन तो सिर्फ शुरुआत थी। आप काम शुरु कर सकती है। - प्रतिष्ठा
 
'''यही त्रिलोचन है...''' <br><br>
चीर भरा पाजामा, लट लट कर गलने से<br>
छेदोंवाला कुर्त्ता, रूखे बाल, उपेक्षित<br>
दाढ़ी-मूँछ, सफाई कुछ भी नहीं, अपेक्षित<br>
यह था वह था, कौन रूके ठहरे, ढलने से<br>
पथ पर फुर्सत कहाँ। सभा हो या सूनापन<br>
अथवा भरी सड़क हो जन-जीवन-प्रवाह से,<br>
झिझक कहीं भी नहीं, कहीं भी समुत्साह से<br>
जाता है। दीनता देह से लिपटी है, मन<br>
तो अदीन है। नेत्र सामना करते हैं, पथ<br>
पर कोई भी आये। ओजस्वी वाग्धारा<br>
बहती है, भ्रम-ग्रस्त जनों को पार उतारा<br>
करती है, खर आवर्तों में ले लेकर मथ<br>
देती है मिथ्याभिमान को। यही त्रिलोचन <br>
है, सब में, अलगाया भी, प्रिय है आलोचन।<br><br>
:::प्रगतिशील काव्य धारा के प्रमुख स्तम्भों में से एक त्रिलोचन जी अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनका काव्य हमे हमेशा मानवीय सरोकारों के प्रति चेताते रहेगा। काव्य-कोश चौपाल के माध्यम से मैं उन्हे अपनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ। (हेमेन्द्र कुमार राय, 10 दिसंबर,2007)
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