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07:19, 29 जून 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेणु हुसैन
|संग्रह=पानी-प्यार / रेणु हुसैन
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<poem>
ऐसे भी जीना पड़ता है
ऐसे भी
दर्दो-ग़म सीने में दबाकर
पलकों में अश्कों को छिपाकर
अपनी जबां को सीना पड़ता है
ऐसे भी जीना पड़ता है
ऐसे भी
किसने हमारी उम्र चुराई
ख़्वाब चुराए, सांस चुराई
जीवन जैसे ज़हर का प्याला
पीना पड़ता है
ऐसे भी जीना पड़ता है
ऐसे भी
<poem>