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03:14, 30 जून 2010 <poem>दर्द के सागर में
मैं डूबता तिरता हूं
कोई नहीं थमता
मेरा हाथ ।
मैं नहीं चाहता
मेरी पीड़ा का
बखान
पहुंचे आप तक
या उन तक ।
लेकिन कोई चारा भी नहीं है
मेरे दर्द का
साक्षी है
मेरा शब्द-शब्द ।
'''अनुवाद : मदन गोपाल लढ़ा''' </poem>
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