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08:59, 30 जून 2010 <poem>घुंडियों के मुंह लगाते ही
लगा मुझे
सारा सुख यहीं है
उमस
आंधी
और लू के थपेड़े
या ओलावृष्टि की मार
कुछ नहीं कर सकती मेरा
तुम्हारी गोद मे मुझे डर कैसा
मैं चूंध तृप्त होता हूं
चूंध तृप्त होता है जगत
तुम्हारी छातियों में
क्षीर सागर है मां !
</poem>
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