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सत्य का आभास / हरीश भादानी
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<poem>
लगता है बहुत कड़ुवा
जम गया है खून
जैसे पर्वती-सरिता
किसी
हिमपत
हिमपात
से ।
रह जाये ना
बिना अर्थ परिवर्तन,
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