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तुम जागो मुस्काओ / हरीश भादानी
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09:25, 4 जुलाई 2010
नये भोर की वेला साथी -
तुम जागो - मुस्काओ ।
सपनों के विषधर समेट कर
लौट चली विष-कन्या रजनी,
भीनी गूँज भँवर की
उड़े पंछियों के कलरव सा -
तुम
स्रुर
सुर
साधो, गाओ।
नीचे का सूरज उठ आया
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