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06:51, 5 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
एक शून्य की परछाईं के भीतर
घूमता है एक और शून्य
पहिये की तरह
मगर कहीं न जाता हुआ
फिरकी के भीतर घूमती
एक और फिरकी
शैशव के किसी मेले की
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