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रचनाकार: भावना कुँअर

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रुलाया था बहुत तुमने, जो मेरे दिल को तोड़ा था

जमाने भर की नफरत को, मेरे हिस्से में छोड़ा था ।


बनाया महल सपनों का, सजाया मन के आँगन को

लगाई थी जो चिंगारी, जलाके सबको छोड़ा था ।


मेरे होने का दम भरके, निभाई गैर से उल्फत

बचाकर मुझसे ही नजरें, भरोसा मेरा तोड़ा था ।


सजाया था बहारों से, मेरे दुश्मन के दामन को

निभाने का किया वादा, मगर वादों को तोड़ा था ।


बिखरकर सूखती डाली, नहीं अब कोई भी माली

था बंधन जो ये सांसों का, उसे तूने ही तोड़ा था।


Categories: कविताएँ | भावना कुँअर
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