Changes

लहू / इक़बाल

229 bytes removed, 08:07, 7 जुलाई 2010
|रचनाकार=इक़बाल
}}
{{KKCatGhazalKKCatNazm}}
<poem>
'''लहू'''
चमने-ख़ार-ख़ार अगर लहू है बदन में तो ख़ौफ़ है न हिरास है दुनियाख़ूने-सद नौबहार अगर लहू है दुनियाबदन में तो दिल है बे-वसवास<ref>निडर</ref>
जान लेती है जुस्तजू जिसे मिला ये मताए-ए-गराँ बहा<ref>चाहतबड़ा धन</ref> इसकी उसकोदौलतेनसीमो-ज़ेरे-मार ज़र<ref>गड़ा हुआ धन जिसके ऊपर साँप कुंडली मार कर बैठा होसोने-चाँदी</ref> से मुहब्बत है दुनिया ज़िन्दगी नाम रख दिया किसनेमौत का इंतज़ार है दुनिया ख़ून रोता है शौक़ मंज़िल कारहज़ने, नै ग़मे-रहगुज़ार इफ़्लास<ref>रास्ते में लूट लेने वालीदरिद्रता का कष्ट</ref> है दुनिया    </poem>
{{KKMeaning}}