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हिमाला / इक़बाल

No change in size, 05:31, 8 जुलाई 2010
हाय क्या फ़र्ते-तरब में झूमता जाता है अब्र
फ़ीले-बेज़ंज़ीरबेज़ंजीर<ref>स्वतंत्र गज</ref> की सूरत उड़ा जाता है दिल
जुंबिशे-मौजे-नसीमे-सुबह<ref>सुबह की हवा का झोंका</ref> गहवारा<ref>हिंडोला</ref> बनी
छेड़ती जा इस इराक़े-दिलनशीं के राज़ को
ऐ मुसाफ़िर ! दिल समझता है तेरी आवाज़ को
लैली-ए-सब शब खोलती है आके आ के जब ज़ुल्फ़े -रसा<ref>सम्पूर्ण केशराशिकेश-राशि</ref>
दामने-दिल खींचती है आबशारों<ref>झरनों</ref> की सदा