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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
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<poem>

मुखबा में हिचकियां लेती-सी दिखती हैं
अतिशीतल हरे जल वाली गंगा !

बादलों की ओट हो चला गोमुख का चितकबरा शिखर

जा बेटी, जा वहीं अब तेरा घर होना है
मरने तक

चमड़े का रस मिले उसको भी पी लेना
गाद-कीच-तेल-तेजाबी रंग सभी पी लेना
ढो लेना जो लाशें मिलें सड़ती हुईं
देखना वे ढोंग के महोत्‍सव
सरल मन जिन्‍हें आबाद करते हैं अपने प्‍यार से

बहती जाना शांत चित्‍त सहलाते-दुलराते
वक्ष पर आ बैठे जल-पाखियों की पांत को
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