666 bytes added,
11:07, 9 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
मेरे मुंतजिर थे
रात के फैले हुए सियह बाजू
स्याह होंठ
थरथराते स्याह वक्ष
डबडबाता हुआ स्याह पेट
और जंघाएं स्याह
मैं नमक की खोज में निकला था
रात ने मुझे जा गिराया
स्याही के ताल में
00