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11:09, 9 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन डंगवाल
|संग्रह=स्याही ताल / वीरेन डंगवाल
}}
<poem>
शहद के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूंगा
वह
जो बहुश्रुत संकलन था
सहस्त्र पुष्प कोषों में संचित रहस्य रस का
जो न पारदर्शी न ठोस न गाढ़ा न द्रव
न जाने कब
एक तर्जनी की पोर से
चखी थी उसकी श्यानता
गई नहीं अब भी वह
काकु से तालु से
जीभ के बींचों-बीच से
आंखों की शीतलता में भी वही
प्रेम के बारे में
मैं एक शब्द भी नहीं बोलूंगा.
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