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जाड़े की घन माला / त्रिलोचन
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08:19, 13 जुलाई 2010
आट-ठाट छाजन का, एकाकार कई हैं,
भिन्न कई हैं, अपनी-अपनी चाल गई हैं,
साज-बाज दिखलाती हुई नवीन
बस्तिया~म
बस्तियाँ
,
नर-नारी की धाराएँ आनंदमयी हैं,
और कहाँ ये चुहल, यह लहर और मस्तियाँ,
अनिल जनविजय
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