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जुलूस का जलसा / त्रिलोचन
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12:55, 13 जुलाई 2010
लानत है, लानत, विराग को राग सुहाए,
साधू हो कर मांस मनुज का
भर मुँह
भरमुँह
खाए ।
</poem>
अनिल जनविजय
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