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कविताओं से बाहर जीने के दौर में / मनोज श्रीवास्तव
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07:30, 16 जुलाई 2010
भुतहे खँडहर में तब्दील हो जाएँगी,
विकास के नाम पर
खंडहरों पर
काल
कल
-कारखाने उगेंगे,
कवितायेँ ज़मींदोज़ हो जाएँगी
विकास की भेंट चढ़ जाएँगी
Dr. Manoj Srivastav
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