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08:51, 16 जुलाई 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
|संग्रह=
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<poem>
''' कविता का मूल्य '''
मंदी या हाट से उठाकर
विदेशी बाजारों से तस्करीकर
या, रातों-रात कालाबाजारी कर
नहीं लाया गया है इसे
इसे अपनी फैक्ट्री में तैयार किया गया है
बाकायदा अपने ही कच्चे मालों से
अपनी मेहनत-मजूरी से
इसकी गुणवत्ता को निखारा गया है;
तुम बेशक! इसे जांच-परख लो
और इसकी कीमत आँक लो
हां, तुम्हें ही करना है
इसका मूल्य-निर्धारण,
यह काम सिर्फ तुम्हारा है
अपने दिलचस्पी की करेंसी नोटों से
इसका जायज मूल्य चुकाना है.