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इंडिया गेट पर एक शाम / मनोज श्रीवास्तव
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10:43, 19 जुलाई 2010
न चुहुलबाजी में गाल बजाते हुए
न चहलकदमी करते हुए
न ही हवाई कलाबाजियां मारते हुए,
चुपचाप पनीली आंखों से
आजादी के साथ
वो सब कर-गुजर रहे हैं
जो
जन साधारण
जनसाधारण
आजादी का मतलब समझने तक
नहीं कर पाएंगे
.
Dr. Manoj Srivastav
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