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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' उपवासिन…
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{{KKRachna
|रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव
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''' उपवासिनी से '''


अपनी उम्र जीने दो मुझे!
मैं तुम्हारी मिन्नतों में मांगी गई
उम्र का मोहताज़ नहीं हूं,
तीज, करवा चौथ और छठ पर
व्रत-उपवास से
पाखण्ड को दुर्दान्त दानवाकार बनाने से
बाज आओ

बस, स्नेह की
एक बूँद-भर ही काफी है--
बिखरते मनोबल को जोड़ने के लिए,
इसलिए मांगो कि मैं--
दस बरस पहले ही मर जाऊँ,
पर, कर्मठता के घोड़े से
कभी न नीचे उतरूं.