{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=संतोष मायामोहन |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poemPoem>घर से निकल कर
घर-घर
नगर-नगर घूमना
तो थी अलग बात
स्त्री वस्त्रों से बाहर
नहीं निकाल सकती थी
हाथ अथवा अपना मन
उस वक्त वक़्त त्यागे तुम ने
महल और अटारी
जगाई पहली जोत -
नारी मुक्ति आंदोलन की ।
तुम तूठी थी दुनिया को
तुम्हें तूठा था कन्हाई !