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शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं / मनोज श्रीवास्तव
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,
07:06, 20 जुलाई 2010
आगंतुक संस्कृति के लिए
कि शहर के बच्चे रोने से
बाज आ चुके हैं
,
?
ज़रुरत नहीं है
इस खुले सच की पड़ताल करने
या,
शोध-अनुसंधान करने की
--
कि किसी अभिशाप के चलते
उनकी आंखों का पानी
रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है
.
Dr. Manoj Srivastav
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